रोंगटे खड़े है मेरे ,
चल रहा हूँ मैदान की ओर।
गहरी हरी जमीन, हल्का नीला आसमान ,
चारो तरफ भीड़ का प्रचण्ड शोर ।
एक-एक कत्रा पसीना बहाया ,
एक-एक बूँद लहू जलाया,
पल-पल समेटे, पंधरह साल की
प्रैक्टिस का आज होगा हिसाब ।
हाथ में बल्ला, सीने पे तिरंगा,
टी-शर्ट की पीठ पर इंडिया,
दिमाग में सन्नाटा,
लेकिन मन में सैलाब ।
अब आ खड़ा हूँ विकेट के आगे,
कुछ नहीं दीखता सिवाए गेंद के,
दूंगा आहुति एक शतक की,
उस देवता को जिसे चढ़ाया था गुलाल,
और उस धरती माता को जिसकी मिटटी का रंग है लाल ।
हाँ, लाल है रंग मेरी मिटटी का,
लाल रंग का है वह गुलाल,
लाल है रंग मेरे खून का,
मेरे जूनून का रंग भी है लाल ।
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